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Monday, August 6, 2018

खो दरीबा महर्षि पाराशर तपोभूमि - एक यात्रा

 खो दरीबा पाराशर तपोभूमि - एक यात्रा

समाज के विभिन्न मंचो एवं बंधुओ से ज्ञात हुआ की महर्षि पराशर की मंडी, हिमाचल प्रदेश आश्रम के साथ ही साथ राजस्थान के अलवर जिले में भी एक तपोभूमि हैं जो महर्षि पराशर के द्वारा राक्षसो के नाश के लिए किए गए यज्ञ की साक्षी हैं, कुछ दिनो के उलझन की जाना चाहिए क्या?, कितने दूर होगा?, कौन कौन आएगा नही आएगा?
इन सब से पार पाते हुए आखिर निश्चय किया कि समाज के कार्यक्रम में भागीदार होने हेतु चलना है, तुरन्त ही समाज बंधुओ से सम्पर्क कर मार्ग की सुचना प्राप्त कर दिल्ली से अलवर के लिए ट्रेन का टिकट कर लिया।
5 अगस्त रविवार को सुबह 4 बजे नींद से जगना था चुकी नई-दिल्ली रेलवे स्टेशन से अजमेर को जाने वाली अजमेर शताब्दी में टिकट था,
सामान्यत रविवार को जल्दी जगना काफी दुष्कर था पर तपोभूमि जाने की उत्कंठा ने सुबह 3 बजे ही जगा दिया।
निश्चित समय से जगने के बाद भी समस्या थी की नई दिल्ली की तरफ जाने वाली पहली मैट्रो सुबह 6 बजे थी जबकि मुझे 6 बजे तो रेलवे स्टेशन पर पहुचंँना था।
तुरत फुरत में अपना स्कूटर निकाला ओर नियत समय से स्टेशन पर पहुच गया।
जेसा की शताब्दी से अपेक्षा होती हैं ट्रेन ने 8.30 मिनिट पर अलवर पहुचाँ दिया,
वहाँ से बस स्टैंड पहुच कर पता चला की खो दरीबा के लिए कोई सीधी बस नही हैं पर राजगढ होते हुए जाना होगा।
वहाँ से बस लेकर राजगढ पहुचाँ तो पता चला की यहाँ से भी खो दरीबा पहुचने हेतु कोई सीधा साधन नही हैं इस हेतु एक टैक्सी तक टहला जाना होगा एवं वहाँ से एक ओर टैक्सी (जीप जोकि एक बार में 30 से 40 यात्री ले जाती हैं) मिलेगी जो खो दरीबा उतारेगी।
मैं जाने के लिए इस जीप में सवार हो गया जिसपर मानो लिखा हो यात्रा के दौरान यात्री अपनी जान का खुद जिम्मेदार हैं।
मैं इन टैक्सी को मदद से जब खो दरीबा पहुचाँ तो पता चला की पराशर बाबा आश्रम हेतु 1 किलोमीटर आगे एक बड़ा दरवाजा मिलेगा जिससे अन्दर एक ओर किलोमीटर जाना पड़ेगा।
उसी राह में जाते हुए एक मोटरसाइकिल चालक से सहायता मांगी तो उसने आगे छोड़ दिया जहाँ से आगे पैदल आश्रम तक पहुचंँना था।
खैर में तपोभूमि लगभग 2 बजे पहुचाँ इस दौरान यात्रा लम्बी थी जो अब तक 9 घन्टे को हो चुकी थी पर राह के मनोरम दृश्यों एवं तपोभूमि पहुचने की उत्कंठा ने थकान नही आने दी और अंत में तपोभूमि पहुचाँ तो दिल से एक ही वाक्य निकला *यहाँ आकर बिल्कुल भी गलती नही हुई हैं*
इतना मनोहारी दृश्य की मन वही रम गया।
फिर समाज बंधुओ की मिलन का जो सिलसिला प्रारम्भ हुआ तो आनन्द देता गया।
समाज के विभिन्न क्षेत्रो जैसे की शिक्षा, समाज, एवं संस्कृति हित हेतु कार्य करने वाले विभिन्न समाज संगठन दिखाई दिए।
समाज के विभिन्न क्षेत्रो में लगी शक्ती को एक संघीय रूप में देख मन प्रशन्न हो गया एवं अन्य सभी समाज बंधुओ की तरह इन सभी संगठन के एक मंच पर आने की कामना के साथ यह यात्रा समाप्त हुई।
स्कूटर से शुरु हुई यात्रा, ट्रेन, औटो, बस टैक्सी एवं अन्त में पैदल चलते हुए यह यात्रा समपट हुई तो भी दिल में एक ही कामना थी, अगले वर्ष भी तपोभूमि आना है।

~ प्रकाश पराशर












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