||शुभ षोभने मुहूर्ते अध्य ब्रह्मणः द्वितियप्रहरार्थे
श्वेत वराह कला वैवष्व मन्वन्तरे कलियुगे
प्रथम पदे भारत वर्षे भारत खण्डे जम्बुद्विपे दण्डकारण्ये
गोदावर्या दक्षिणेतीरे शालिवाहन शाकवर्षे बौद्धावतारे
रामक्षेत्रे अस्मिन् वर्तमाने व्यवहारिके ||
इस संकल्प मंत्र को सर्वकार्य में सर्वप्रथम स्मरण किया जाता हैं, इस संकल्प में जिस भारत वर्ष की बात कही गयी हैं, वो ऊपर हिमालय से निचे विशाल महासागर तक फेला हुआ हैं, उसी को भारतवर्ष कहा गया हैं, जो की सांस्कृतिक एवम भौतिक दृष्टि से समृद्ध हैंI
सांस्कृतिक दृष्ठि अत्यंत परिष्कृत वेदों का प्रदाता भारतवर्ष हैं, वेद जिन्हें हर हिन्दू और भारतवर्ष के निवासियो को जानना चाहिएI
वेद के मुख्य रूप से चार हैं
1. ऋग्वेद
2. यजुर्वेद
3. सामवेद
4. अथर्ववेद
2. यजुर्वेद
3. सामवेद
4. अथर्ववेद
ऋग्वेद-वेदों में सर्वप्रथम ऋग्वेद का निर्माण हुआ एवम ये आदि वेद हैं। यह पद्यात्मक हैं एवम इसमें 11 हजार मंत्र हैं।
ऋग्वेद- शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन भागो में विभक्त हैं। ऋग्वेद के दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है। इसे अर्थशास्त्र ऋषि ने बताया है। ऋग्वेद में 125 औषधियों की जानकारी दी गई है।
यजुर्वेद – यह वेद गद्य मय है, यह वेद मुख्यतः क्षत्रियों के लिए होता है।
यजुर्वेद के दो भाग हैं , कृष्ण :वैशम्पायन ऋषि (वेदव्यास जी) से सम्बन्धित है। कृष्ण की चार शाखाएं हैं।
शुक्ल : याज्ञवल्क्य ऋषि से सम्बन्धित है। यह वेद इसके अलावा, दिव्य वैद्य और कृषि विज्ञान के विषय से भी सम्बंधित हैं।
अथर्ववेद- इसमें जादू, चमत्कार, आरोग्य, यज्ञ के लिए मंत्र हैं। यह वेद मुख्य रूप से व्यापारियों के लिए होता है। इसमें 20 काण्ड हैं। इसके आठ खण्ड हैं जिनमें भेषज वेद और धातु वेद ये दो नाम मिलते हैं।
शुक्ल : याज्ञवल्क्य ऋषि से सम्बन्धित है। यह वेद इसके अलावा, दिव्य वैद्य और कृषि विज्ञान के विषय से भी सम्बंधित हैं।
सामवेद - सामवेद गीतमय है। चार वेदों में सामवेद का नाम तीसरे स्थान पर आता है। इसमें मुख्य रूप से 3 शाखाएं हैं, 75 ऋचाएं हैं।
अथर्ववेद- इसमें जादू, चमत्कार, आरोग्य, यज्ञ के लिए मंत्र हैं। यह वेद मुख्य रूप से व्यापारियों के लिए होता है। इसमें 20 काण्ड हैं। इसके आठ खण्ड हैं जिनमें भेषज वेद और धातु वेद ये दो नाम मिलते हैं।
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